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About Talesara Vikas Sansthan


तलेसरा समाज एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं में निहित एक जीवंत और एकजुट समुदाय है। पीढ़ियों से, तलेसरा समाज के सदस्य एकता, सम्मान और प्रगति के मूल्यों को बनाए रखते हुए समाज के समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
हमारे समुदाय का उद्देश्य मजबूत संबंधों को बढ़ावा देना, सांस्कृतिक मूल्यों का प्रचार करना और सभी सदस्यों की भलाई और विकास के लिए मिलकर काम करना है। तलेसरा समाज शिक्षा, सामाजिक कल्याण और युवा पीढ़ी को उनके व्यक्तिगत और पेशेवर विकास में समर्थन देने में गर्व महसूस करता है।
हम सामूहिक प्रयासों की शक्ति में विश्वास करते हैं, और हमारा दृष्टिकोण एक ऐसा मंच प्रदान करना है जहाँ प्रत्येक सदस्य जुड़ सके, सहयोग कर सके और समुदाय के भविष्य में योगदान दे सके।
Talesara Gotras
Origin: Gotra Talesara (Telhara Talesara Talera)

विशेषकर तलेसरा गोत्र की उत्पत्ति के संबंध में उपलब्ध विवरण में कई प्रकार की धारणाएँ हैं। चौपड़ों और साक्षात्कारों के आधार पर जो मैंने समझा है, उसका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहा हूँ। यहाँ वर्णित विचार मेरे व्यक्तिगत हैं, और यदि किसी गोत्र सदस्य को यह कथन आपत्तिजनक लगे या दुःख पहुँचा हो, तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।
जिज्ञासा मानव स्वभाव का एक अद्वितीय गुण है, और यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि तलेसरा गोत्र के पूर्वज कौन थे? वे किस वंश से थे? और वे कहाँ से आए? तलेसरा गोत्र की उत्पत्ति को लेकर कई असमंजस बने हुए हैं। हमारे पास सुनाई-सुनाई बातों के अलावा राजसमंद और नाथद्वारा के महात्माओं के चौपड़ों से तलेसरा गोत्र के बारे में कुछ अस्पष्ट जानकारियाँ मिलती हैं, लेकिन तथ्यों और साक्ष्यों की कमी के कारण तलेसरा गोत्र की उत्पत्ति के बारे में कोई ठोस निष्कर्ष निकालना संभव प्रतीत नहीं होता।
उपलब्ध चौपड़ों में बामणिया तलेसरा का विवरण मेवाड़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले तलेसराओं के बारे में है। आपकी जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि तलेसरा केवल मेवाड़ क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि मंदसौर, जावद, रतलाम, मनासा, प्रतापगढ़, कुशलगढ़, सादड़ी, और कुम्भलगढ़ जैसे क्षेत्रों में भी बसे हुए हैं। हालांकि, ये चौपड़े अन्य क्षेत्रों में बसे तलेसरा गोत्र के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं देते। एक अन्य चौपड़े में पाटन, गुजरात से आए सोलंकी तलेसराओं का भी उल्लेख मिलता है। अतः, केवल इन चौपड़ों के आधार पर तलेसरा गोत्र की उत्पत्ति के बारे में कोई ठोस बयान देना सही नहीं होगा।
तलेसरा गोत्र की उत्पत्ति पर चर्चा करने से पहले, हमें भारतीय समाज की संरचना को भी समझना होगा। भारतीय समाज का स्तरीकरण चार वर्णों पर आधारित था, जिसमें ब्राह्मण सबसे ऊपर था। विवाह अपने ही वर्ण में होता था (कुछ अपवादों को छोड़कर), और यह व्यवस्था प्रारंभ में कर्म पर आधारित थी, लेकिन बाद में यह जन्म पर आधारित हो गई। समय के साथ यही वर्ण व्यवस्था जाति में परिवर्तित हो गई, और जाति का मुख्य आधार जन्म हो गया।
तलेसरा गोत्र ओसवाल जाति में आता है, और अधिकांश ओसवालों की उत्पत्ति ओसिया से मानी जाती है। जैन आचार्यों द्वारा ब्राह्मणों को ओसवाल बनाने की प्रक्रिया कम समझ में आती है, क्योंकि यह समझना कठिन है कि कोई ब्राह्मण अपना वर्ण छोड़कर दूसरे वर्ण में क्यों जाएगा। धर्म और जाति अलग-अलग हैं, और जब हमसे कोई पूछता है कि हम किस जाति के हैं, तो हम प्रायः जैन धर्म का उल्लेख करते हैं, जबकि हमारी जाति ओसवाल होती है।
धर्म व्यक्तिगत मान्यता पर आधारित होता है और जाति जन्म पर। ओसवाल जाति में जैन धर्म के अनुयायियों के साथ-साथ अन्य धर्मों के अनुयायी भी हैं। गोत्र का तात्पर्य कुल वंशज के समूह से है, और एक ही जाति में विभिन्न गोत्र होते हैं। सगोत्र विवाह वर्जित माना जाता है।
WHAT WE DO
Social Welfare
Assisting and engaging in community welfare through charitable activities and social outreach.
Social Unity
Host sports, cultural activities, and leadership training for youth to encourage participation and growth.
Marriage Assistance
Offer support and guidance in organizing community marriages and matrimonial services.
Environmental Initiatives
Implement tree-planting drives, cleanliness campaigns, and sustainability projects to improve the local environment.